बुधवार, 4 जनवरी 2012

बायोमास काष्ठ कोयला (चारकोल) इष्टिका


बायोमास काष्ठ कोयला (चारकोल) इष्टिका

गाँवों में फसल की कटाई के बाद कृषि कार्यों से बड़ी मात्रा में अपशिष्ट पदार्थ प्राप्त होता है। उनमें से अधिकाँश को खेत में जला दिया जाता है। जबकि बायोमास काष्ठ (चारकोल) इष्टिका प्रौद्योगिकी का प्रयोग कर उस अपशिष्ट पदार्थ का उपयोग वैकल्पिक ईंधन उत्पन्न करने में किया जा सकता है। जो किफायती होने के साथ-साथ पर्यावरण उन्मुखी भी हो सकता है।
ब्रिकेटिंग
ब्रिकेटिंग उस प्रक्रिया को कहते हैं जिसमें कम घनत्व वाले बायोमास को उच्च घनत्व एवं ऊर्जा केन्दित ईंधन ब्रिकेट के रूप में बदला जाता है।
क्रिया विधि
चारकोल बनाने की दो पद्धतियाँ प्रचलित है -
1. प्रत्यक्ष पद्धति - प्रत्यक्ष पद्धति में कार्बनिक पदार्थ को गर्म कर उसमें अपूर्ण दहन उत्पन्न किया जाता है और उसके परिणामस्वरूप चारकोल का निर्माण होता है।
2. अप्रत्यक्ष पद्धति - इस पद्धति के अंतर्गत कार्बनिक पदार्थ को जलाने में बाह्य ऊर्जा स्रोत का उपयोग किया जाता है। इसके लिए कार्बनिक पदार्थ को वायु रहित खुले चैम्बर में रखा जाता है। इस पद्धति से कम धुँआ और प्रदूषण वाला उच्च गुणवत्ता युक्त चारकोल का उत्पादन होता है।
चारकोल ब्रिकेटिंग की एम.सी.आर.सी पद्धति
आवश्यकताएँ

चारकोल निर्माण की चरणवार पद्धति

ब्रिकेट्स की सामान्य विशेषताएँ -

प्रौद्योगिकी के लाभ
1. धुँआ रहित - चारकोल ब्रिकेट जलने और फटने के समय बिना किसी धुँआ के जलता है।
2. न्यूनतम राख - न्यूनतम अवशेष राख प्राप्त होता (चारकोल के वास्तविक वजन के 5 प्रतिशत से भी कम)
3. उच्च स्थिर कार्बन एवं कैलोरिफिक मूल्य - सामान्य रूप से स्थिर कार्बन का संकेद्रण लगभग 82 प्रतिशत होगा। चारकोल ब्रिकेट का कैलोरिफिक मूल्य 7500 किलो कैलोरी/किलो ग्राम होता है।
4. गंधहीन - बायोमास चारकोल ब्रिकेट में न्यूनतम वाष्पशील पदार्थ होते हैं, इस तरह यह गंध की संभावना को दूर कर देता है।
5. लम्बे समय तक दहन - सामान्य लकड़ी की तुलना यह दो गुणा लम्बे समय तक जलता है।
6. चिनगारी रहित - सामान्य लकड़ी की तुलना में चारकोल ब्रिकेट्स अधिक चिनगारी उत्पन्न नहीं करते।
7. कम दरारें और बेहतर मजबूती - कम दरारें और बेहतर मजबूती चारकोल को लम्बे समय तक जलने में सक्षम बनाता है।
इस संबंध में और अधिक जानकारी के लिए सम्पर्क करें -
निदेशक,
गोकुल धाम गौशाला 
बेनीपुर दरभंगा 847203 (बिहार )


बायोमास के प्रयोग


बायोमास के प्रयोग

ऊर्जा दक्षता

कृषि


कृषि

जल को पंपिंग के माध्यम से बाहर निकालना
इन पम्प सेटों की कार्यक्षमता में छोटे-बड़े संशोधनों सहित 25 से 35 प्रतिशत के सुधार की संभावना होती है, जैसे इसकी जगह आईएसआई वाले पम्पों को प्रयोग में लाना।
  • बड़े वॉल्व के चलते विद्युत /डीज़ल बचाने में मदद मिलती है क्योंकि कुँआ से पानी बाहर निकालने में अल्प ईंधन व ऊर्जा की आवश्यकता होती है।
  • • पाईप में घुमाव व गाँठ जितना कम होगा, उसी मात्रा में ऊर्जा को भी बचाया जा सकता है।
  • किसान पाईप की ऊँचाई को 2 मीटर तक कम करके डीजल की बचत कर सकते हैं।
  • पम्प अधिक कारगर तब होता है जब उसकी ऊँचाई कुएं के जल स्तर से 10 फीट से अधिक न हों।
  • अच्छी गुणवत्ता वाले पीवीसी सेक्शन पाईप का इस्तेमाल करें ताकि 20 प्रतिशत तक की ऊर्जा व विद्युत को बचाया जा सके।
  • निर्माणकर्ता के निर्देशानुसार पम्प सेटों में नियमित तौर पर तेल व ग्रीस का प्रयोग किया जाना चाहिए।
  • वोल्टेज व ऊर्जा संरक्षण की स्थिति को सुधारने के लिए मोटर सहित उपयुक्त आईएसआई मार्क वाले कैपासिटर का प्रयोग करना चाहिए।
  • दिन के समय बल्बों को बंद रखें।

पुनः चक्रित कागज


पुनः चक्रित कागज

कागज बनाते समय पुनः चक्रित कागज कम प्राकृतिक संसाधन और कम विषाक्त रसायन का उपयोग करता है। यह बताया गया है कि 100 प्रतिशत अवशेष कागज से एक टन कागज का निर्माण किया जा सकता है।
* यह लगभग 15 वृक्षों को बचाता है।
* लगभग 2500 किलोवाट ऊर्जा की बचत करता है।
* लगभग 20 हजार लीटर पानी बचाता है।
* लगभग 25 किलो ग्राम वायु प्रदूषण को कम करता है।

भोजन पकाने में


भोजन पकाने में

  • खाना बनाने में ऊर्जा क्षमतावाले चूल्हों का प्रयोग करें।
  • खाना बनाते समय बर्तन को ढक कर रखें। इससे खाना बनाते समय ऊर्जा की बचत होती है।
  • खाना बनाने से पहले अनाज को भिगोये रखें।

प्रकाश व्यवस्था में


प्रकाश व्यवस्था में

  • जब उपयोग में न हो, बल्ब बुझा दें।
  • ट्यूब लाईट, बल्बों तथा अन्य उपकरणों पर जमी हुई धूल को नियमित रूप से साफ करें।
  • हमेशा आईएसआई मुहर लगे बिजली उपकरणों और साधनों का प्रयोग करें।
  • अपनी ट्यूब लाइट और बल्बों को ऐसी जगह लगाएँ जहाँ प्रकाश आने में दिक्कत न हो।
  • ऊर्जा बचाने के लिए सीएफएल बल्ब का प्रयोग करें।

घर में

ऊर्जा संरक्षण क्यों ?


ऊर्जा संवर्द्धनकारी प्रौद्योगिकी