सोमवार, 2 जनवरी 2012

ग्रामीण ऊर्जा के अंतर्गत प्रौद्योगिकियाँ


ग्रामीण ऊर्जा के अंतर्गत प्रौद्योगिकियाँ

अनवीकरणीय ऊर्जा


अनवीकरणीय ऊर्जा

अनवीकरणीय स्रोत
कोयला, खनिज तेल एवं प्राकृतिक गैस, ऊर्जा के अनवीकरणीय स्रोत है। इसे जीवाश्म ईंधन भी कहा जाता है क्योंकि यह वृक्षों के उत्पाद हैं जो हजारों वर्ष जीवित अवस्था मंम थे। आज जीवाश्म ईंधन का उपयोग प्रमुख ऊर्जा स्रोत के रूप में हो रहा है। भारत के पास विश्व के कुल कोयला भंडार का 7 प्रतिशत उपलब्ध है। कोयला देश के कुल ऊर्जा आवश्यकता के 50 प्रतिशत की पूर्ति करता है। भारत में प्रतिवर्ष 114 मीट्रिक टन खनिज तेल की खपत होती है जिसमें से 75 प्रतिशत का आयात किया जाता है। जीवाश्म ईंधन के जलने से पर्याप्त मात्रा में पर्यावरण भी प्रदूषित होता है।

भिकीय ऊर्जा के दोष


  • रेडियो सक्रिय अपशिष्ट पदार्थों के सुरक्षित निबटान की समस्या।
  • दुर्घटना होने पर बड़े खतरे तथा उसके गहरे हानिकारक प्रभाव की संभावना।
  • इसमें प्रयुक्त कच्चा पदार्थ यूरेनियम एक दुर्लभ संसाधन है। एक आकलन के मुताबिक वास्तविक मांग के अनुसार यह 30 से 60 वर्षों में ही खत्म हो जाएगा।

नाभिकीय ऊर्जा के लाभ


  • नाभिकीय ऊर्जा के निर्माण में कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) की अपेक्षाकृत कम मात्रा निकलती है। इसलिए वैश्विक तापन (ग्लोबल वार्मिंग) में नाभिकीय ऊर्जा के निर्माण का अपेक्षाकृत कम योगदान रहता है।
  • मात्र एक इकाई द्वारा ही बड़े पैमाने पर बिजली पैदा की जा सकती है।

नाभिकीय ऊर्जा


नाभिकीय ऊर्जा

नाभिकीय ऊर्जा ऐसी ऊर्जा है जो प्रत्येक परमाणु में अंतर्निहित होती है। नाभिकीय ऊर्जा संयोजन (परमाणुओं के संयोजन से) अथवा विखंडन (परमाणु-विखंडन) प्रक्रिया द्वारा उत्पन्न की जा सकती है। इनमें विखंडन की प्रक्रिया व्यापक रूप से प्रयोग में लाई जाती है।
नाभिकीय विखंडन प्रक्रिया के लिए यूरेनियम एक प्रमुख कच्चा पदार्थ है। दुनियाभर में यह कई स्थानों से खुदाई के माध्यम से प्राप्त किया जाता है। इसे संसाधित कर छोटी गोलियों में बदला जाता है। (संवर्धित यूरेनियम अर्थात्, रेडियो सक्रिय आइसोटोप प्राप्त करने हेतु)। इन गोलियों को लंबी छ्ड़ों में भरकर ऊर्जा इकाईयों के रिएक्टर में डाला जाता है। परमाणु ऊर्जा इकाई के रिएक्टर के अंदर यूरेनियम परमाणु नियंत्रित श्रृंखला अभिक्रिया (कंट्रोल्ड चेन रिएक्शन) द्वारा विखंडित किये जाते हैं। विखंडित होकर बनने वाले अन्य पदार्थों में प्लूटोनियम तथा थोरियम शामिल हैं।
किसी श्रृंखला अभिक्रिया में परमाणु के टूटने से बने कण अन्य यूरेनियम परमाणुओं पर प्रहार करते हैं तथा उन्हें विखंडित करते हैं। इस प्रक्रिया में निर्मित कण एक श्रृंखला अभिक्रिया द्वारा पुनः अन्य परमाणुओं को विखंडित करते हैं। यह प्रक्रिया बड़ी तीव्र गति से न हो इसके लिए नाभिकीय ऊर्जा प्लांट में विखंडन को नियंत्रित करने के लिए नियंत्रक रॉड का प्रयोग किया जाता है। इन्हें मंदक (मॉडरेटर) कहते हैं।
श्रृंखला अभिक्रिया द्वारा ऊष्मा ऊर्जा मुक्त होती है। इस ऊष्मा का प्रयोग रिएक्टर के कोर में स्थित भारी जल को गर्म करने में किया जाता है। इसलिए नाभिकीय ऊर्जा प्लांट परमाण्विक ऊर्जा को ऊष्मा ऊर्जा में बदलने के लिए किसी अन्य इंधन को जलाने की बजाय, श्रृंखला अभिक्रिया द्वारा उत्पन्न ऊर्जा का प्रयोग करता है। नाभिकीय कोर के चारों तरफ फैले भारी जल को ऊर्जा प्लांट के अन्य खंड में भेजा जाता है। यहां यह जल से भरे पाइपों के दूसरे सेट को गर्म कर भाप पैदा करता है। पाइपों के इस दूसरे सेट से उत्पन्न वाष्प का प्रयोग टर्बाइन चलाने में किया जाता है, जिससे बिजली पैदा होती है।
नाभिकीय ऊर्जा के गुण-दोष
नाभिकीय ऊर्जा के लाभ
नाभिकीय ऊर्जा के दोष

जल


जल एवं भू-तापीय ऊर्जा

जल
नदी का बहता पानी और समुद्र में उत्पन्न ज्वारभाटा ऊर्जा के प्रमुख स्रोत हैं। वर्ष 2005 के दौरान विद्युत क्षेत्र में जल ऊर्जा का योगदान 26 प्रतिशत था। पिछले कुछ वर्षों में बड़ी परियोजनाओं पर भारी निवेश किए गए हैं। हाल के वर्षों में जल ऊर्जा का उपयोग कर छोटे जल विद्युत ईकाई के माध्यम से उन सुदूर गाँवों में बिजली पहुँचाई गई जो अब तक इस सुविधा से वंचित थे। देश में छोटे जल विद्युत की आकलित संभाव्यता लगभग 15 हजार मेगा वाट है। पिछले 10-12 वर्षों में, छोटे जल विद्युत परियोजनाओं की क्षमता लगभग 63 मेगा वाट से बढ़कर 240 मेगा वाट हो गई है। देश में 25 मेगा वाट तक की क्षमता वाले 420 छोटे जल विद्युत परियोजना की स्थापना की गई जिसकी कुल उत्पादन क्षमता 1423 मेगा वाट थी। इसी प्रकार 187 परियोजनाएँ अभी निर्माणाधीन है जिसकी कुल उत्पादन क्षमता 521 मेगा वाट है।
भू-तापीय ऊर्जा
भू-तापीय ऊर्जा का शाब्दिक अर्थ है पृथ्वी द्वारा सृजित उष्णता। प्रकृति में विद्यमान उष्ण जल स्रोत भू-तापीय ऊर्जा की उपस्थिति का सूचक है। हालांकि भारत में 300 से भी अधिक उष्ण जल स्रोत है, परंतु अभी भी इस ऊर्जा लक्ष्य को हासिल करना शेष है।

जैव ईंधन


जैव ईंधन


यह प्रकाश संश्लेषण की एक प्रक्रिया है। इसके माध्यम से जैव ईंधन का उत्पादन करने के लिए पौधे सौर ऊर्जा का निर्धारण करते हैं। यह जैव ईंधन विभिन्न प्रक्रिया से गुज़रते हुए विविध ऊर्जा स्रोतों का उत्पादन करता है। उदाहरण के लिए पशुओं को चारा, जिसके बदले हमें गोबर प्राप्त होता है, कृषि अवशेष के द्वारा खाना पकाना आदि। भारत में जैव ईंधन की वर्तमान उपलब्धता लगभग 120-150 मिलियन मीट्रिक टन प्रतिवर्ष है जो कृषि और वानिकी अवशेषों से उत्पादित है और जिसकी ऊर्जा संभाव्यता 16,000 मेगा वाट है।
उपयोग
जैव ईंधन ऊर्जा का एक महत्वपूर्ण स्रोत है जिसका देश के कुल ईंधन उपयोग में एक-तिहाई का योगदान है और ग्रामीण परिवारों में इसकी खपत लगभग 90 प्रतिशत है। जैव ईंधन का व्यापक उपयोग खाना बनाने और उष्णता प्राप्त करने में किया जाता है। उपयोग किये जाने वाले जैव ईंधन में शामिल है- कृषि अवशेष, लकड़ी, कोयला और सूखे गोबर।
लाभ
  • स्थानीय रूप से उपलब्ध और कुछ हद तक बहुत ज़्यादा।
  • जीवाश्म ईंधन की तुलना में यह एक स्वच्छ ईंधन है। एक प्रकार से जैव ईंधन, कार्बन डायऑक्साइड का अवशोषण कर हमारे परिवेश को भी स्वच्छ रखता है।
हानि
  • ईंधन को एकत्रित करने में कड़ी मेहनत।
  • खाना बनाते समय और घर में रोशनदानी (वेंटीलेशन) नहीं होने के कारण गोबर से बनी ईंधन वातावरण को प्रदूषित करती है जिससे स्वास्थ्य गंभीर रूप से प्रभावित होता।
  • जैव ईंधन के लगातार और पर्याप्त रूप से उपयोग न करने के कारण वनस्पति का नुकसान होता है जिसके चलते पर्यावरण के स्तर में गिरावट आती है।
जैव ईंधन के उत्पादक प्रयोग हेतु प्रौद्योगिकी
जैव ईंधन के प्रभावी उपयोग को सुरक्षित करती प्रौद्योगिकियाँ ग्रामीण क्षेत्रों में फैल रहीं हैं।
ईंधन उपयोग की क्षमता निम्नलिखित कारणों से बढ़ाई जा सकती है -
  • विकसित डिज़ाइन के स्टोवों का उपयोग, जो क्षमता को दोगुणा करता है जैसे धुँआ रहित ऊर्जा चूल्हा।
  • जैव ईंधन को सम्पीड़ित/सिकोड़कर (कम्प्रेस) ब्रिकेट के रूप में बनाये रखना ताकि वह कम स्थान ले सके और अधिक प्रभावी ढंग से कार्य कर सके।
  • जैव वस्तुओं को एनारोबिक डायजेशन के माध्यम से बायोगैस में रूपांतरित करना जो न केवल ईंधन की आवश्यक्ताओं को पूरा करता है बल्कि खेतों को घुलनशील खाद भी उपलब्ध कराता है।
  • नियंत्रित वायु आपूर्ति के अंतर्गत जैव ईंधन के आंशिक दहन के माध्यम से उसे उत्पादक गैस में रूपांतरित करना।
जैव ईंधन
जैव ईंधन मुख्यत: सम्मिलित बायोमास से उत्पन्न होता है अथवा कृषि या खाद्य उत्पाद या खाना बनाने और वनस्पति तेलों के उत्पादन की प्रक्रिया से उत्पन्न अवशेष और औद्योगिक संसाधन के उप उत्पाद से उत्पन्न होता है। जैव ईंधन में किसी प्रकार का पेट्रोलियम पदार्थ नहीं होता है किन्तु इसे किसी भी स्तर पर पेट्रोलियम ईंधन के साथ जैव ईंधन का रूप भी दिया जा सकता है। इसका उपयोग परंपरागत निवारक उपकरण या डीजल इंजन में बिना प्रमुख संशोधनों के साथ उपयोग किया जा सकता है। जैव ईंधन का प्रयोग सरल है। यह प्राकृतिक तौर से नष्ट होने वाला सल्फर तथा गंध से पूर्णतया मुक्त है।

पवन ऊर्जा


पवन ऊर्जा

धरती एवं समुद्र क्षेत्र पर पवन का बहाव प्राकृतिक रूप से होता है। जब हवा का उपयोग पवन चक्की के पंखे को घुमाने में किया जाता है तब वह उससे जुड़ी धुरी को घुमाता है। पंप या जेनरेटर के माध्यम से धुरी के घूमने की यह प्रक्रिया बिजली उत्पन्न करती है। एक अनुमान के मुताबिक भारत के पास 45 हजार मेगावाट पवन ऊर्जा उत्पादन की क्षमता है। भारत के पास पवन ऊर्जा उत्पादन की स्थापित क्षमता 1870 मेगावाट है और इस मामले में उसका विश्व में पाँचवा स्थान है। भारत में पवन ऊर्जा उत्पादन के क्षेत्र में निजी क्षेत्र की हिस्सेदारी 95 प्रतिशत तक है।
लाभ
* यह पर्यावरण उन्मुखी है व
* यह स्वतंत्र रूप से पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है।
हानि
* अधिक निवेश की आवश्यकता होती है व
* हमेशा वायु की गति एक समान नहीं होने के कारण बिज़ली उत्पादन प्रभावित होता।

नवीकरणीय ऊर्जा

ऊर्जा कार्य करने की क्षमता है


ऊर्जा कार्य करने की क्षमता है


ऊर्जा और इसका वर्तमान उपयोग
ग्रामीण क्षेत्रों में ऊर्जा की माँग दिनों-दिन बढती जा रही है। वर्तमान में ऊर्जा का उपयोग मुख्य रूप से खाना बनाने, प्रकाश की व्यवस्था करने और कृषि कार्य में किया जा रहा है। 75 प्रतिशत ऊर्जा की खपत खाना बनाने और प्रकाश करने हेतु, उपयोग में लाया जा रहा है। ऊर्जा प्राप्त करने के लिए बिजली के अतिरिक्त स्थानीय स्तर पर उपलब्ध जैव ईंधन एवं केरोसिन आदि का भी उपयोग ग्रामीण परिवारों द्वारा बड़े पैमाने पर किया जाता है। कृषि क्षेत्र में ऊर्जा का उपयोग मुख्यतः पानी निकालने के काम में किया जाता है। इन कार्यों में बिजली और डीज़ल भी उपयोग में लाया जा रहा है। देश में कृषि कार्यों में मानव शक्ति बड़े पैमाने पर व्यर्थ चला जाता है। यद्यपि ऊर्जा उपयोग का स्तर गाँव के भीतर अलग-अलग है, जैसे अमीर और गरीबों के बीच, सिंचाईपरक भूमि और सूखी भूमि के बीच, महिलाओं और पुरुषों के बीच आदि।

भारत में ऊर्जा के इस्तेमाल की वर्तमान स्थिति
भारत  की लगभग 70 प्रतिशत आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करती है। यदि हमें  वर्तमान विकास की गति को बरकरार रखना है तो ग्रामीण ऊर्जा की उपलब्धता को सुनिश्चित करना सबसे महत्वपूर्ण चुनौती है। अब तक हमारे देश के 21 प्रतिशत गाँवों तथा 50 प्रतिशत ग्रामीण परिवारों तक बिजली नहीं पहुँच पाई है।
ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के बीच प्रति व्यक्ति ऊर्जा की खपत में काफी अंतर है। उदाहरण के लिए 75प्रतिशत ग्रामीण परिवार रसोई के ईंधन के लिए लकड़ी पर, 10 प्रतिशत गोबर की उपालियों पर और लगभग 5 प्रतिशत रसोई गैस पर निर्भर हैं। जबकि इसके विपरीत, शहरी क्षेत्रों में खाना पकाने के लिए 22 प्रतिशत परिवार लकड़ी पर, अन्य 22 प्रतिशत केरोसिन पर तथा लगभग 44 प्रतिशत परिवार रसोई गैस पर निर्भर हैं। घर में प्रकाश के लिए 50 प्रतिशत ग्रामीण परिवार केरोसिन पर तथा अन्य48 प्रतिशत बिजली पर निर्भर हैं।
जबकि शहरी क्षेत्रों में इसी कार्य के लिए 89 प्रतिशत परिवार बिजली पर तथा अन्य 10 प्रतिशत परिवार केरोसिन पर निर्भर हैं। ग्रामीण महिलाएँ अपने उत्पादक समय में से लगभग चार घंटे का समय रसोई के लिए लकड़ी चुनने और खाना बनाने में व्यतीत करती हैं लेकिन उनके इस श्रम के आर्थिक मूल्य को मान्यता नहीं दी जाती।
देश के विकास के लिए ऊर्जा की उपलब्धता एक आवश्यक पूर्व शर्त्त है।  खाना पकाने, पानी कीसफाई, कृषि, शिक्षा, परिवहन, रोज़गार सृजन एवं पर्यावरण को बचाये रखने जैसे दैनिक गतिविधियों में ऊर्जा महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
ग्रामीण क्षेत्रों में उपयोग होने वाले लगभग 80 प्रतिशत ऊर्जा बायोमास से उत्पन्न होता है। इससे गाँव में पहले से बिगड़ रही वनस्पति की स्थिति पर और दबाव बढ़ता जा रहा है। गैर उन्नत चूल्हा,लकड़ी इकट्ठा करने वाली महिलाएँ एवं बच्चों की कठिनाई को और अधिक बढ़ा देती है। सबसे अधिक, खाना पकाते समय इन घरेलू चूल्हों से निकलने वाला धुंआँ महिलाओं और बच्चों के श्वसन तंत्र को काफी हद तक प्रभावित करता है।