शनिवार, 28 जुलाई 2012

खरगोश पालन

खरगोश पालन क्‍यों।
  • कम निवेश और छोटी जगह में ही खरगोश पालन अधिक आय देता है।
  • खरगोश साधारण खाना खाता है और खरगोश से उच्‍च गुणवत्‍ता वाला प्रोटीनयुक्‍त माँस उपलब्‍ध होता है।
  • मीट उत्‍पादन के अलावा वे फर और खाल के लिए भी पाले जा सकते हैं।


खरगोश पालन किसके लिए है
भूमिहीन किसानों, अशिक्षित युवाओं और महिलाओं के लिए खरगोश पालन अंशकालिक नौकरी की तरह एक अतिरिक्‍त आय का साधन बनता है। 

           खरगोश पालन से लाभ 
    • खरगोश पालन से कोई भी अपने परिवार के लिए उच्‍च गुणवत्‍ता वाला प्रोटीनयुक्‍त माँस प्राप्‍त कर सकता है।
    • खरगोश को घर में आसानी से उपलब्‍ध पत्‍ते, बची हुई सब्जियां और चने खिलाए जा सकते हैं।
    • ब्रॉयलर खरगोशों में वृद्धि दर अत्‍यधिक उच्‍च होती है। वे तीन महीने की उम्र में ही 2 किलो के हो जाते हैं।
    • खरगोश में लिटर साइज (बच्‍चों की संख्‍या) सबसे अधिक होती है (8 से 12)
    • अन्‍य माँस से तुलना करने पर खरगोश के मीट में उच्‍च प्रोटीन (21 फीसदी) और कम वसा (8 फीसदी) होता है। इसलिए यह माँस सभी उम्र के लोगों, वयस्‍क से बच्‍चों तक के लिए उपयुक्‍त है।में उच्‍च प्रोटीन (21 फीसदी) और कम वसा (8 फीसदी) होता है। इसलिए यह माँस सभी 


खरगोश की प्रजातियाँ
भारी वजन वाली किस्‍में (4 से 6 किलो)

भारी वजन वाली किस्‍में (4 से 6 किलो)
  • व्‍हाइट जायंट
  • ग्रे जायंट
  • फ्लैमिश जायंट
                            खरगोश के बड़े सफेद नस्ल
मध्‍यम वजन वाली प्रजातियां (3 से 4 किलो)
  • न्‍यूजीलैंड व्‍हाइट
  • न्‍यूजीलैंड रेड
  • कैलीफोर्नियन
कम वजन वाली प्रजातियां (2 से 3 किलो)
  • सोवियत चिनचिला
  • डच
                  सोवियत चिंचिला नस्ल


खरगोश पालन के तरीके
खरगोश को आंगन में छोटे से शेड के नीचे पाला जा सकता है जिसका निर्माण कम निवेश में भी संभव है। खरगोशों को मौसमी परिस्थितियों जैसे तेज गर्मी, बरसात और कुत्‍तों और बिल्लियों से बचाने के लिए भी शेड अति आवश्‍यक है।
खरगोश को दो तरह के घरों में पाला जा सकता है-
डीप लिटर प्रणाली
यह तरीका कम संख्‍या में खरगोशों को पालने के लिए उपयुक्‍त है। खरगोशों द्वारा गहरा गढ्डा खोदने से रोकने के लिए फर्श ठोस सीमेंट की बनी होनी चाहिए। लिटर सामग्री जैसे धान की भूसी, धान की बालियां या लकड़ी के चिल्‍लों से फर्श को 4-6 इंच तक की गहराई तक भरा जा सकता है। डीप लिटर प्रणाली 30 खरगोशों से अधिक के लिए उपयुक्‍त नहीं है। नर खरगोशों को अलग से रखा जाना चाहिए। इस प्रकार के घर खरगोशों के सघन पालन के लिए उपयुक्‍त नहीं होते। डीप लिटर प्रणाली में पल रहे खरगोश बीमारियों के प्रति कम प्रतिरोधी होते हैं। डीप लिटर प्रणाली में इनका प्रबंधन करना भी काफी कठिन होता है।

पिंजरा प्रणाली

स्‍थान की आवश्‍यकता
  • वयस्‍क नर खरगोश - 4 वर्ग फुट
  • डैम/मध्‍यम - 5 वर्ग फुट
  • बनीज/छोटे - 1.5 वर्ग फुट
वयस्‍क खरगोश का पिंजरा
वयस्‍क खरगोश के पिंजरे को 1.5 फुट लंबा, 1.5 फुट चौड़ा और 1.5 फुट ऊंचा होना चाहिए। यह पिंजरा एक वयस्‍क खरगोश या दो बढ़ते हुए खरगोशों के लिए ठीक है।
बढ़ते खरगोश का पिंजरा
  • लंबाई- 3 फुट
  • चौड़ाई- 1.5 फुट
  • ऊंचाई- 1.5 फुट
ऊपर दिये गये पिंजरे का आकार तीन महीने तक की उम्र के 4-5 खरगोशों के लिए ठीक है।
बढ़ते हुए खरगोशों के लिए पिंजरे
बढ़ते खरगोशों के लिए पिंजरे का आकार इसके लिए पर्याप्‍त है, लेकिन पिंजरे के तल और किनारे 1.5X1.5 इंच के वेल्‍ड मेश से बने हुए होने चाहिए। यह छोटे खरगोशों को पिंजरे से बाहर आने से रोकने के लिए इस्‍तेमाल होता है।
नेस्‍ट बॉक्‍स
सुरक्षित और शांत वातावरण उपलब्‍ध कराने के लिए बढ़ते हुए खरगोशों के लिए नेस्‍ट बॉक्‍स अनिवार्य है। यह नेस्‍ट बॉक्‍स लोहे या लकड़ी की छड़ों से बनाया जा सकता है। नेस्‍ट बॉक्‍स का आकार बढ़ते हुए खरगोशों को पिंजरे में रखने के लिए इस तरह से होना चाहिए।
नेस्‍ट बॉक्‍स का आकार
  • लंबाई - 22 इंच
  • चौड़ाई- 12 इंच
  • ऊंचाई- 12 इंच

             नेस्‍ट बॉक्‍स
नेस्‍ट बॉक्‍स को ऊपर के सिरे से खोलने के हिसाब से डिजाइन किया जाता है। नेस्‍ट बॉक्‍स का तल 1.5 X 1.5 इंच के वेल्‍ड मेश से बना हुआ होना चाहिए। 15 सेंटीमीटर का गोलाकार छेद नेस्‍ट बॉक्‍स के ऊर्ध्‍व हिस्‍से और तल से 10 सेंटीमीटर ऊपर होना चाहिए। यह छेद पिंजरे के नेस्‍ट बॉक्‍स से पिंजरे तक खरगोश को हरकत करने में आसानी करता है। नेस्‍ट बॉक्‍स के तल से 10 सेंटीमीटर ऊपर छेद का डिजाइन छोटे खरगोशों को नेस्‍ट बॉक्‍स से बाहर आने से रोकता है।
आंगन में खरगोश पालन के लिए पिंजरे
आंगन में खरगोश पालन के लिए पिंजरे फर्श से 3’-4’ ऊपर बने होने चाहिए। पिंजरे का तल वाटर प्रूफ होना चाहिए।
खाद्य और जल नली
खरगोशों के लिए खाद्य और जल नली आमतौर पर गैल्‍वेनीकृत लोहे से बनी होती है। खाद्य सामग्री अँग्रेजी के J (जे) अक्षर के आकार में होनी चाहिए और सामान्‍यतौर पर इन्‍हें पिंजरे के बाहर ही रखना उपयुक्‍त होता है। खर्च घटाने के लिए खाद्य और पानी कप में उपलब्‍ध कराया जा सकता है।

            अँग्रेजी के जे (J) आकार का नांद या भोजन पात्र
                


                  पानी पिलाने का पात्र



खाद्य प्रबंधन
  • खरगोश सभी प्रकार के अनाज (सोर्गम, बाजरा और अन्‍य अनाज) और फलीदार मजे से खाते हैं। हरा चारा जैसे डेशमेंथस, ल्‍यूसरने, अगाथी, रसोई की बची हुई चीजें जैसे- गाजर और गोभी के पत्‍ते और अन्‍य सब्जियों की इस्‍तेमाल में न आने वाली चीजें खरगोश बड़े चाव से खाते हैं।
    खरगोश के खाने में पोषक तत्‍व जो मौजूद होने चाहिए-
    पोषक तत्‍वों का विवरण
    वृद्धि के लिए
    देखभाल के लिए
    गर्भावस्‍था के लिए
    स्‍तनपान के लिए
    पाचन योग्‍य ऊर्जा (कैलोरी)
    2500
    2300
    2500
    2500
    प्रोटीन (%)
    18
    16
    17
    19
    रेशे(%)
    10-13
    13-14
    10-13
    10-13
    वसा (%)
    2
    2
    2
    2
    खरगोश के खाद्य प्रबंधन में याद रखने योग्‍य बिंदु
    • खरगोश के दातं लगातार बढ़ते हैं, इसलिए बढ़ते खरगोशों के लिए अकेले खाद्य सामग्री लेना असंभव है।
    • खाने का समय तय होना चाहिए। यदि खरगोश के खाने में देरी होती है, तो वे बेचैन हो जाते हैं जिससे उनका वजन घटता है।
    • दिन में अधिक तापमान के चलते दिन के समय खरगोश खाना नहीं लेंगे, लेकिन वे रात में सक्रिय रहते हैं। इसलिए खरगोशों को रात में हरा चारा देना चाहिए क्‍योंकि वह बरबाद नहीं जाता। सुबह के समय में ठोस खाना दिया जाना चाहिए।
    • मुख्‍य भोजन को गोली के रूप में भी दिया जा सकता है। यदि गोली के रूप में भोजन उपलब्‍ध न हो, तो मुख्‍य भोजन को पानी के साथ मिलाकर उसकी छोटी-छोटी गोलियां बना कर भी खरगोश को दिया जा सकता है।
    • एक खरगोश को एक दिन में 40 ग्राम मुख्‍य भोजन और 40 ग्राम हरा चारा दिया जा सकता है।
    • खरगोश हमेशा ताजा हरा चारा खाता है। हरे चारे को कभी भी पिंजरे की फर्श पर नहीं रखना चाहिए, लेकिन उन्‍हें पिंजरे के किनारे डाला जा सकता है।
    • दिन के किसी भी समय खरगोश को साफ ताजा पानी ही उपलब्‍ध कराया जाना चाहिए।
    खरगोश के प्रकार
    अनुमानित वजन
    खाद्य राशि/ दिन (ग्राम)
    ठोस खाद्य
    हरा पत्‍ते
    वयस्‍क नर खरगोश
    4-5 किलोग्राम
    100
    250
    वयस्‍क मादा खरगोश
    4-5 किलोग्राम
    100
    300
    स्‍तनपायी और गर्भवती मादा खरगोश
    4-5 किलोग्राम
    150
    150
    छोटे खरगोश
    0.6-0.7 किलोग्राम
    50-75
    150
    खाद्य सामग्री के नमूने-
    घटक  
    मात्रा
    टूटे हुए मकई के दाने
    30 हिस्‍से
    टूटा और साबुत बाजरा
    30 हिस्‍से
    मूंगफली के तेल के टुकड़े
    13 हिस्‍से
    गेंहू के दाने
    25 हिस्‍से
    खनिज मिश्रण
    1.5 हिस्‍से
    नमक
    0.5 हिस्‍से



खरगोश का प्रजनन प्रबंधन
प्रजनन की उम्र

  • मादा खरगोश- 5-6 महीने
  • नर खरगोश- 5-6 महीने (नर खरगोश 5-6 महीने की उम्र में ही परिपक्‍व हो जाते हैं, लेकिन उच्‍च कोटि के खरगोशों की प्राप्ति के लिए प्रजनन के समय उनकी उम्र एक वर्ष की होनी चाहिए।

प्रजनन के लिए खरगोशों का चुनाव

  • वयस्‍क शारीरिक वजन को प्राप्‍त करने के बाद 5-8 महीने की उम्र में खरगोशों का चुनाव किया जा सकता है।
  • नर और मादा खरगोश के प्रजनन के लिए चुनाव उच्‍च लिटर आकार से होना चाहिए।
  • प्रजनन के लिए स्‍वस्‍थ खरगोश का ही चयन किया जाना चाहिए। स्‍वस्‍थ खरगोश सक्रिय होते हैं और आमतौर पर भोजन और पानी लेने के मामले में वे सामान्‍य होते हैं। इसके अलावा वे अपने शरीर को साफ रखते हैं। स्‍वस्‍थ खरगोश के बाल सामान्‍यत: साफ, मुलायम और चमकीले होते हैं।
  • नर खरगोश के प्रजनन के लिए चुनाव करते समय ऊपर दी गई चीजों के अलावा यह देखना चाहिए कि उसके अण्‍डाशय में दो टेस्टिस हैं या नहीं।
  • नर खरगोश का चुनाव करते समय उन्‍हें मादा खरगोश के साथ यौन क्रिया करने की छूट देनी चाहिए ताकि उसकी प्रजनन क्षमता के बारे में जाना जा सके।

मादा खरगोशों में उत्‍तेजक संकेत या ऋतुचक्र लक्षण
खरगोशों में कोई विशिष्‍ट ऋतुचक्र नहीं होता। जब कभी मादा खरगोश नर खरगोश को संभोग के लिए छूट देती है, तभी मादा खरगोश ऋतुचक्र में होती है। कभी-कभी यदि एक मादा खरगोश उत्‍तेजक होती है, उसकी योनि संकुचित होती है। जब नर खरगोश उत्‍तेजना या ऋतुचक्र में मादा खरगोश के पास रखा जाता है, मादा खरगोश उदासीनता दिखाती है और अपने शरीर के पिछले हिस्‍से को ऊपर नहीं उठाती है। उसी समय यदि मादा खरगोश उत्‍तेजक नहीं होती, तो वह पिंजरे के कोने में चली जाती है और नर खरगोश पर हमला कर देती है।

खरगोशों का प्रजनन
प्रजनन के बारे में विस्‍तृत सूचना
नर:मादा अनुपात
1:10
पहले संभोग के समय आयु
5-6 महीने। नर खरगोश पहले संभोग के दौरान अच्‍छे लिटर आकार के लिए आमतौर पर 1 वर्ष के होते हैं।
संभोग के समय मादा खरगोश का वजन
2.25-2.5 किलो
वृद्धि का समय
28-31 दिन
दूध छुड़ाने की उम्र
6 हफ्ते
किंडलिंग के बाद संभोग का समय
किंडलिंग के 6 हफ्ते बाद या छोटे खरगोशों के दूध छुड़ाने के बाद
बेचने के समय आयु
12 हफ्ते
बेचने के समय वजन
लगभग 2 किलो या उससे बड़े
उत्‍तेजक संकेत देने वाली मादा खरगोश को नर खरगोश के पिंजरे में ले जाया जाता है। यदि मादा खरगोश ऋतुचक्र में सही समय में हो तो वह अपनी पूंछ ऊपर उठाकर नर खरगोश को अपने साथ संभोग करने का आमंत्रण देती है। सफलतापूर्वक संभोग के बाद नर खरगोश एक ओर गिर जाता है और विशेष तरह की आवाजें निकालता है। एक नर खरगोश का इस्‍तेमाल सप्‍ताह में 3 या 4 दिन से अधिक के लिए नहीं किया जाना चाहिए। इसी तरह एक नर खरगोश को दिन में 2 से 3 बार से अधिक प्रजनन के लिए इस्‍तेमाल नहीं किया जाना चाहिए। प्रजनन के लिए इस्‍तेमाल किए जाने वाले नर खरगोश को पर्याप्‍त आराम और अच्‍छा पोषण दिया जाना चाहिए। एक रेबीट्री में 10 मादा खरगोशों के लिए एक नर खरगोश होना चाहिए। एक या दो नर खरगोश अतिरिक्‍त पाले जा सकते हैं ताकि यदि प्रजनन के लिए इस्‍तेमाल किए जाने वाले खरगोश बीमार हो गए, तो उनका इस्‍तेमाल किया जा सके।
ब्रायलर खरगोशों के मामले में गर्भावधि 28 से 31 दिन की होती है। गर्भावस्‍था का पता प्रजनन के 12-15 दिन बाद मादा खरगोश के पेट को छूकर लगाया जा सकता है। पिछले पैरों के बीच में पेट के हिस्‍से में स्‍पर्श क्रिया करनी चाहिए। यदि कोई गोलमटोल सा हिस्‍सा उंगुलियों के बीच में पकड़ में आता है, इसका मतलब मादा खरगोश गर्भवती है। जो मादा खरगोश 12-14 दिन बाद गर्भवती नहीं हुई हों, उन्‍हें नर खरगोश के साथ फिर से संभोग करने दिया जाना चाहिए। यदि कोई मादा खरगोश लगातार तीन बार संभोग के बाद भी गर्भवती नहीं हुई हो, तो उस खरगोश को फार्म से निकाला जा सकता है।
आमतौर पर संभोग के 25 दिन बाद से गर्भवती मादा खरगोशों का वजन 500 से 700 ग्राम बढ़ जाता है। इस बढ़े हुए वजन को खरगोशों को उठाकर देखा जा सकता है। यदि गर्भवती मादा खरगोश को नर खरगोश के साथ संभोग करने की छूट दी जाए, तो वे ऐसा नहीं करेंगे।
गर्भवती मादा खरगोश की देखभाल

गर्भावस्‍था का पता लगाने के बाद गर्भवती मादा खरगोश को सामान्‍य भोजन से 100 से 150 ग्राम अधिक मुख्‍य भोजन की मात्रा खिलाई जानी चाहिए। गर्भवती मादा खरगोश को संभोग के बाद 25वें दिन पिंजरे में भेजा जा सकता है। संभोग की संभावित ति‍थि के पांच दिन पहले नेस्‍ट बॉक्‍स को पिंजरे में रखा जा सकता है। सूखे नारियल के रेशे या धान की फूस का इस्‍तेमाल नेस्‍ट बॉक्‍स में बिछाने की सामग्री के तौर पर किया जाता है। गर्भवती मादा खरगोश अपने पेट से बालों को तोड़ देती है और किंडलिंग के एक या दो दिन पहले नवजात के लिए एक नेस्‍ट का निर्माण करती है। इस समय के दौरान खरगोश को परेशान नहीं किया जाना चाहिए और बाहर से लोगों को किंडलिंग पिंजरे के पास आने की छूट नहीं दी जानी चाहिए।
आमतौर पर कींडलिंग सुबह जल्‍दी होती है। सामान्‍यतौर पर कींडलिंग 15 से 30 मिनट की अवधि में समाप्‍त होती है। डैम अपने आपको और अपने छोटे बच्‍चे को सुबह जल्‍दी ही साफ कर लेती है। नेस्‍ट बॉक्‍स की जांच सुबह जल्‍दी ही कर ली जानी चाहिए। मरे हुए बच्‍चे को नेस्‍ट बॉक्‍स से तुरंत हटा दिया जाना चाहिए। नेस्‍ट बॉक्‍स की जांच के दौरान डैम बेचैन हो सकती है। इसलिए डैम को नेस्‍ट बॉक्‍स की जांच के पहले ही हटा लिया जाना चाहिए।

नवजात खरगोश की देखभाल और प्रबंधन

जन्‍म के दौरान पैदा हुए खरगोश की आंखें बंद होती हैं और उनके शरीर पर बाल नहीं होते। सभी नए पैदा हुए खरगोश आमतौर पर नेस्‍ट बॉक्‍स में डैम द्वारा बनाए गए बिछौने पर लेटते हैं। आमतौर पर डैम सुबह के समय दिन में एक बार अपने पैदा हुए बच्‍चे को दूध पिलाती है। यदि हम मादा खरगोश के लिए बच्‍चे को दिनभर दूध देने के लिए बाध्य करेंगे तो वह अपना दूध नहीं निकालेगी। आमतौर पर पैदा हुए खरगोशों की त्‍वचा अपनी मां से प्राप्‍त दूध की पर्याप्‍त मात्रा से चमकीली होती है। लेकिन जिन खरगोशों को अपनी मां से पर्याप्‍त दूध नहीं मिल पाता, उनकी त्‍वचा सूखी होती है और उस पर झुर्रियां दिखाई पड़ती हैं और उनके शरीर का तापमान निम्‍न रहता है एवं वे आलसी दिखाई देते हैं।

सौतेली मां से स्‍तनपान
आमतौर पर एक मादा खरगोश के 8 से 12 स्‍तनाग्र होते हैं। जब लिटर की संख्‍या स्‍तनाग्र की संख्‍या से ज्‍यादा होती है तो नए पैदा हुए खरगोश पर्याप्‍त मात्रा में दूध नहीं प्राप्‍त कर पाते और उसका परिणाम उनकी मौत के रूप में आता है। दूसरी ओर अन्‍य परिस्थिति में जैसे उसकी अच्‍छी तरह से देखभाल में कमी के कारण उनकी मौत भी संभव है। ऐसे में सौतेली मां का इस्‍तेमाल नए बच्‍चे की नर्सिंग के लिए किया जाता है।

सौतेली माता के लिटर बदलने के दौरान ध्‍यान रखने वाले बिंदु

  • बदले जाने वाले बच्‍चों और सौतेली मां के बच्‍चों के बीच उम्र का अंतर 48 घंटे से ज्‍यादा नहीं होना चाहिए
  • तीन से ज्‍यादा बच्‍चों या सौतेली मांओं को नहीं बदला जाना चाहिए
  • छोटे खरगोशों को नेस्‍ट बॉक्‍स में तीन सप्‍ताह का होने तक ठहराया जाता है। बाद में नेस्‍ट बॉक्‍स को किंडलिंग पिंजरे से हटा दिया जाता है। छोटे खरगोशों से 4 से 6 हफ्ते की उम्र में दूध छुड़ाया जा सकता है। दूध छुड़ाते समय पहले डैम को किंडलिंग पिंजरे से हटाना चाहिए और छोटे खरगोशों को उसी पिंजरे में 1 से 2 हफ्ते रखा जाना चाहिए। बाद में खरगोशों का लिंग पहचाना जाना चाहिए और फिर अलग-अलग लिंग के खरगोशों को अलग-अलग पिंजरों में रखा जाना चाहिए। हमें अचानक खरगोशों के भोजन में परिवर्तन नहीं करना चाहिए।
छोटे खरगोशों की मृत्‍यु दर में कमी

शुरुआती 15 दिनों तक छोटे खरगोश डैम के साथ रहते हैं। इस समय के दौरान केवल माता का दूध ही पैदा हुए बच्‍चे के लिए भोजन होता है। इस समय में छोटे खरगोशों की मौत मुख्‍यत: डैम के चलते होती है। 15 दिनों के बाद छोटे खरगोश पानी और खाना लेने में सक्षम हो जाते हैं। इस समय में वे बीमारियों के प्रति कम प्रतिरोधी होते हैं, इसलिए यह सलाह दी जाती है कि डैम और छोटे खरगोश को उबाला हुआ ठंडा पानी दिया जाना चाहिए। एक मिलीलीटर हाइड्रोजन पेरोक्‍साइड को एक लीटर पानी में खरगोशों को उपलब्‍ध करवाए जाने से 20 मिनट पहले मिलाया जाना चाहिए।

स्‍वस्‍थ खरगोश के लक्षण
  • स्‍वस्‍थ और चमकीले बाल
  • अत्‍यधिक सक्रिय
  • खाने के बाद भी अच्‍छा और जल्‍दी से खा लेना
  • आमतौर पर आंखें बिना किसी डिस्‍चार्ज के चमकीली रहती हैं
  • उत्‍साहजनक तरीके से वजन का बढ़ना


बीमार खरगोश के लक्षण
                     
  • कमजोर और उदासीन
  • वजन में कमी और दुर्बलता
  • बालों का तेजी से गिरना
  • खरगोशों में किसी सक्रिय गतिविधि का न होना। आमतौर पर वे पिंजरे में किसी एक स्‍थान पर खड़े रहते हैं।
  • खाद्य को कम मात्रा में लेना
  • आंख, नाक, मलद्वार और मुंह से पानी या अन्‍य चीज का बाहर निकलना
  • शरीरिक तापमान और श्‍वसन दर का बढ़ना

खरगोश को होनेवाली बीमारियाँ
चिकित्‍सीय संकेत


लगातार खांसने और छींकने के दौरान खरगोश अपनी नाक अपने आगे के पैरों से लगातार खुजलाते हैं। श्‍वसन के दौरान निकलने वाली आवाज बरतनों की खड़खड़ाहट जैसी होती है। इसके अलावा इनमें बुखार और हैजा भी होता है। इसके लिए जिम्‍मेदार सूक्ष्‍म जीवाणु ही उनकी त्‍वचा के नीचे पिस्‍सू पैदा कर देते हैं और उनका गला खराब कर देते हैं।
उपचार: पिस्‍सू लगने की स्थिति में उपचार उतना प्रभावी नहीं होता। भले ही इनसे ग्रस्‍त खरगोश ठीक हो जाते हैं, लेकिन वे अन्‍य स्‍वस्‍थ खरगोशों को संक्रमित कर सकते हैं। इससे बचने का एक ही तरीका है कि ऐसे खरगोशों को फार्म से बाहर निकाल दिया जाए।
एंटेराइटिस: खरगोशों में एंटेराइटिस पैदा करने करने के लिए कई सूक्ष्‍म जीवाणु जिम्‍मेदार होते हैं। इन जीवाणुओं के प्रति खरगोशों को संवेदनशील बनाने में खाने में हुआ अचानक बदलाव, भोजन में कार्बोहाइड्रेट की अत्‍यधिक मात्रा, प्रतिरोध क्षमता में कमी, अस्‍वच्‍छ भोजन और पानी आदि जिम्‍मेदार हैं। इस बीमारी के चिकित्‍सीय संकेतों में हैजा, पेट का आकार बढ़ना, बाल मुरझाना और पानी की कमी है। हैजा के चलते पानी की कमी से खरगोश सुस्‍त हो जाते हैं।
राई नेक बीमारी
पिस्‍सुओं से संक्रमित खरगोश राई नेक बीमारी की चपेट में आ जाते हैं जो उनके बीच के कान और दिमाग पर असर डालती है। कान से पास पिव निकलने के कारण खरगोश अपना सिर एक तरफ झुका लेता है। पिस्‍सुओं के प्रभावी उपचार से इस बीमारी को नियंत्रित किया जा सकता है।
मा‍स्‍टाइटिस
बच्‍चा खरगोशों की देखभाल करने वाली माता खरगोश को मास्‍टाइटिस हो सकता है। जिस उदग्र में यह बीमारी होती है, वह लाल और दर्दीला हो जाता है। एंटीबायोटिक देने से इस बीमारी को नियंत्रित किया जा सकता है।

फंगस के संक्रमण से होने वाली बीमारियां
          खरगोशों में त्‍वचा का संक्रमण डर्मेटोपाइसिस फंगस से होता है। कान और नाक के आसपास बाल की कमी हो जाती है। खुजली के कारण खरगोश लगातार संक्रतिम क्षेत्रों में खुजली करते हैं जिससे उस हिस्‍से में घाव हो जाते हैं। इसके बाद इन इलाकों में बैक्‍टीरिया के संक्रमण से पस बनना शुरू हो जाता है।
उपचार
प्रभावित हिस्‍सों पर ग्रीसियोफुल्विन या बेंजाइल बेंजोएट क्रीम लगानी चाहिए। इस बीमारी के नियंत्रण के लिए भोजन में प्रति किलो 0.75 ग्राम ग्रीसियोफुल्विन मिला कर दो हफ्ते तक दिया जाना चाहिए।

खरगोशः बीमारी नियंत्रित करने हेतु स्‍वच्‍छता मानक
    • खरगोश फार्म ऐसे स्‍थान पर होना चाहिए जो पर्याप्‍त हवादार हो
    • पिंजरे साफ-सुथरे होने चाहिए
    • खरगोशों की झोपड़ी के चारों ओर पेड़ होने चाहिए
    • साल में दो बार सफेदी की जानी चाहिए
    • हफ्ते में दो बार पिंजरों के नीचे चूने का पानी छिड़कना चाहिए
    • गर्मी के मौसम में गर्मी से होने वाली मौतों को रोकने के लिए खरगोशों पर पानी का छिड़काव किया जाना चाहिए
    • पीने के लिए पानी देने से पहले उसे अच्‍छी तरह उबाल लिया जाना चाहिए और विशेषतौर पर डैम और हाल में पैदा हुए बच्‍चों के लिए उसे ठंडा कर लिया जाना चाहिए
    • बैक्‍टीरियाई सूक्ष्‍म जीवाणुओं से होने वाली बीमारी को रोकने के लिए प्रति ‍लीटर पीने के पानी में 0.5 टेट्रासाइक्‍लीन मिलानी चाहिए और हर महीने में तीन दिन इसे दिया जाना चाहिए।
     बीमारी को रोकने के लिए प्रति ‍लीटर पीने के पानी में 0.5 टेट्रासाइक्‍लीन मिलानी चाहिए और हर महीने में तीन दिन इसे दिया जाना चाहिए।