शुक्रवार, 23 दिसंबर 2011

जुताई कार्य में प्रयुक्त नस्ल


अमृतमहल
  • यह मुख्यतः कर्नाटक में पाई जाती है।
  • हल चलाने व आवागमन के लिये आदर्श

हल्लीकर
  • मुख्यतः कर्नाटक के टुमकुर, हासन व मैसूर जिलों में पाई जाती है।

खिल्लार
  • मुख्यतः तमिलनाडु के कोयम्बटूर, इरोडे, नमक्कल, करूर व डिंडिगल जिलों में मिलते है।
  • हल चलाने व आवागमन हेतु आदर्श। विपरीत परिस्थितियों का सामना करते हैं।

दुधारू व जुताई कार्य में प्रयुक्त नस्ल


ओन्गोले
  • मुख्यतः आन्ध्र प्रदेश के नेल्लोर कृष्णा, गोदावरी व गुन्टूर जिलों में मिलते है।
  • दुग्ध उत्पादन- 1500 किलोग्राम
  • बैल शक्तिशाली होते है व बैलगाडी ख़ींचने व भारी हल चलाने के काम में उपयोगी होते है।

हरियाणा
  • मुख्यतः हरियाणा के करनाल, हिसार व गुडगांव जिलों में व दिल्ली तथा पश्चिमी मध्य प्रदेश में मिलते है।
  • दुग्ध उत्पादन- 1140 से 4500 किलोग्राम
  • बैल शक्तिशाली होते हैं व सडक़ परिवहन तथा भारी हल चलाने के काम में उपयोगी होते है।

कांकरेज
  • मुख्यतः गुजरात में मिलते हैं।
  • दुग्ध उत्पादन- ग्रामीण स्थितियों में- 1300 किलोग्राम
  • व्यावसायिक फार्म की स्थिति में- 3600 किलोग्राम
  • प्रथम बार प्रजनन की उम्र- 36 से 42 महीने
  • प्रजनन की अवधि में अंतराल - 15 से 16 महीने
  • बैल शक्तिशाली, सक्रिय व तेज़ होते है। हल चलाने व परिवहन के लिये उपयोग किये जा सकते है। देओनी
    • मुख्यतः आंध्र प्रदेश के उत्तर दक्षिणी व दक्षिणी भागों में मिलता है।
    • गाय दुग्ध उत्पादन के लिये अच्छी होती है व बैल काम के लिये सही होते हैं।
                

दुधारू नस्ल



सहिवाल
  • मुख्यतः पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, दिल्ली, बिहार व मध्य प्रदेश में पाया जाता है।
  • दुग्ध उत्पादन- ग्रामीण स्थितियों में 1350 किलोग्राम
  • व्यावसायिक फार्म की स्थिति में- 2100 किलो ग्राम
  • प्रथम प्रजनन की उम्र - 32-36 महीने
  • प्रजनन की अवधि में अंतराल - 15 महीने

गीर
  • दक्षिण काठियावाड क़े गीर जंगलों में पाये जाते हैं।
  • दुग्ध उत्पादन- ग्रामीण स्थितियों में- 900 किलोग्राम
  • व्यावसायिक फार्म की स्थिति में- 1600 किलोग्राम
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थारपकर
  • मुख्यतः जोधपुर, कच्छ व जैसलमेर में पाये जाते हैं
  • दुग्ध उत्पादन- ग्रामीण स्थितियों में- 1660 किलोग्राम
  • व्यावसायिक फार्म की स्थिति में- 2500 किलोग्राम

करन फ्राइ
करण फ्राइ का विकास राजस्थान में पाई जाने वाली थारपारकर नस्ल की गाय को होल्स्टीन फ्रीज़ियन नस्ल के सांड के वीर्याधान द्वारा किया गया। यद्यपि थारपारकर गाय की दुग्ध उत्पादकता औसत होती है, लेकिन गर्म और आर्द्र जलवायु को सहन करने की अपनी क्षमता के कारण वे भारतीय पशुपालकों के लिए महत्वपूर्ण होती हैं।
karan-frie breed
  • नस्ल की खूबियां
  • इस नस्ल की गायों के शरीर, ललाट और पूंछ पर काले और सफेद धब्बे होते हैं। थन का रंग गहरा होता है और उभरी हुई दुग्ध शिराओं वाले स्तनाग्र पर सफेद चित्तियां होती है।
  • करन फ्राइ गायें बहुत ही सीधी होती हैं। इसके मादा बच्चे नर बच्चों की तुलना में जल्दी वयस्क होते हैं और 32-34 महीने की उम्र में ही गर्भधारण की क्षमता प्राप्त कर लेते हैं।
  • गर्भावधि 280 दिनों की होती है। एक बार बच्चे देने के बाद 3-4 महीनों में यह पुन: गर्भधारण कर सकती है। इस मामले में यह स्थानीय नस्ल की गायों की तुलना में अधिक लाभकारी सिद्ध होती हैं क्योंकि वे प्राय: बच्चे देने के 5-6 महीने बाद ही दुबारा गर्भधारण कर सकती हैं।
  • दुग्ध उत्पादन : करन फ्राइ नस्ल की गायें साल भर में लगभग 3000 से 3400 लीटर तक दूध देने की क्षमता रखती हैं। संस्थान के फार्म में इन गायों की औसत दुग्ध उत्पादन क्षमता 3700 लीटर होती है, जिसमें वसा की मात्रा 4.2% होती है। इनके दूध उत्पादन की अवधि साल में 320 दिन की होती है।
  • अच्छी तरह और पर्याप्त मात्रा में हरा चारा और संतुलित सांद्र मिश्रित आहार उपलब्ध होने पर इस नस्ल की गायें प्रतिदिन 15-20 लीटर दूध देती हैं। दूध का उत्पादन बच्चे देने के 3-4 महीने की अवधि के दौरान प्रतिदिन 25-30 लीटर तक होता है।
  • उच्च दुग्ध उत्पादन क्षमता के कारण ऐसी गायों में थन का संक्रमण अधिक होता है और साथ ही उनमें खनिज पदार्थों की भी कमी पाई जाती है। समय पर पता चल जाने से ऐसे संक्रमणों का इलाज आसानी से हो जाता है।
बछड़े की कीमत : तुरंत ब्यायी हुई गाय की कीमत दूध देने की इसकी क्षमता के अनुसार 20,000 रुपये से 25,000 रुपए तक हो सकती है।
अधिक जानकारी के लिए, संपर्क करें:
अध्यक्ष,
डेयरी पशु प्रजनन शाखा
गोकुल धाम गौशाला  संस्थान,दरभंगा
बिहार - ८४७२०३
फ़ोन: 9801150124
लाल सिंधी
  • मुख्यतः पंजाब, हरियाणा, कर्नाटक, तमिल नाडु, केरल व उडीसा में पाये जाते हैं।
  • दुग्ध उत्पादन- ग्रामीण स्थितियों में- 1100 किलोग्राम
  • व्यावसायिक फार्म की स्थिति में- 1900 किलोग्राम

मवेशियों में होनेवाली बीमारी व उसका उपचार


मवेशियों में होनेवाली बीमारी व उसका उपचार

मवेशियों के लिए आवास स्थान आवश्यकताएँ


आयु-वर्ग
नाँद का क्षेत्र (मीटर)
स्थायी या ढंका हुआ क्षेत्र (वर्ग मीटर)
खुला क्षेत्र (वर्ग मीटर)
4-6 महीने
0.2-0.3
0.8-1.0
3.0-4.0
6-12 महीने
0.3-0.4
1.2-1.6
5.0-6.0
1-2 साल
0.4-0.5
1.6-1.8
6.0-8.0
गाएं
0.8-1.0
1.8-2.0
11.0-12.0
गर्भवती गाएं
1.0-1.2
8.5-10.0
15.0-20.0
सांड *
1.0-1.2
9.0-11.0
20.0-22.0
* अलग से रखे जाने चाहिए
स्रोत:

पशुओं में बांझपन - कारण और उपचार

भारत में डेयरी फार्मिंग और डेयरी उद्योग में बड़े नुकसान के लिए पशुओं का बांझपन ज़िम्मेदार है. बांझ पशु को पालना एक आर्थिक बोझ होता है और ज्यादातर देशों में ऐसे जानवरों को बूचड़खानों में भेज दिया जाता है.
पशुओं में, दूध देने के 10-30 प्रतिशत मामले बांझपन और प्रजनन विकारों से प्रभावित हो सकते हैं. अच्छा प्रजनन या बछड़े प्राप्त होने की उच्च दर हासिल करने के लिए नर और मादा दोनों पशुओं को अच्छी तरह से खिलाया-पिलाया जाना चाहिए और रोगों से मुक्त रखा जाना चाहिए.
बांझपन के कारण
बांझपन के कारण कई हैं और वे जटिल हो सकते हैं. बांझपन या गर्भ धारण कर एक बच्चे को जन्म देने में विफलता, मादा में कुपोषण, संक्रमण, जन्मजात दोषों, प्रबंधन त्रुटियों और अंडाणुओं या हार्मोनों के असंतुलन के कारण हो सकती है.
यौन चक्र
गायों और भैंसों दोनों का यौन (कामोत्तेजना) 18-21 दिन में एक बार 18-24 घंटे के लिए होता है. लेकिन भैंस में, चक्र गुपचुप तरीके से होता है और किसानों के लिए एक बड़ी समस्या प्रस्तुत करता है. किसानों के अल-सुबह से देर रात तक 4-5 बार जानवरों की सघन निगरानी करनी चाहिए. उत्तेजना का गलत अनुमान बांझपन के स्तर में वृद्धि कर सकता है. उत्तेजित पशुओं में दृश्य लक्षणों का अनुमान लगाना काफी कौशलपूर्ण बात है. जो किसान अच्छा रिकॉर्ड बनाए रखते हैं और जानवरों के हरकतें देखने में अधिक समय बिताते हैं, बेहतर परिणाम प्राप्त करते हैं.
बांझपन से बचने के लिए युक्तियाँ
  • ब्रीडिंग कामोत्तेजना अवधि के दौरान की जानी चाहिए.
  • जो पशु कामोत्तेजना नहीं दिखाते हैं या जिन्हें चक्र नहीं आ रहा हो, उनकी जाँच कर इलाज किया जाना चाहिए.
  • कीड़ों से प्रभावित होने पर छः महीने में एक बार पशुओं का डीवर्मिंग के उनका स्वास्थ्य ठीक रखा जाना चाहिए. सावधिक डीवर्मिंग में एक छोटा सा निवेश, डेरी उत्पाद प्राप्त करने में अधिक लाभ ला सकता है.
  • पशुओं को ऊर्जा के साथ प्रोटीन, खनिज और विटामिन की आपूर्ति करने वाला एक अच्छी तरह से संतुलित आहार दिया जाना चाहिए. यह गर्भाधान की दर में वृद्धि करता है, स्वस्थ गर्भावस्था, सुरक्षित प्रसव सुनिश्चित करता है, संक्रमण की घटनाओं को कम और एक स्वस्थ बछड़ा होने में मदद करता है.
  • अच्छे पोषण के साथ युवा मादा बछड़ों की देखभाल उन्हें 230-250 किलोग्राम इष्टतम शरीर के वजन के साथ सही समय में यौवन प्राप्त करने में मदद करता है, जो प्रजनन और इस तरह बेहतर गर्भाधान के लिए उपयुक्त होता है.
  • गर्भावस्था के दौरान हरे चारे की पर्याप्त मात्रा देने से नवजात बछड़ों को अंधेपन से बचाया जा सकता है और (जन्म के बाद) नाल को बरकरार रखा जा सकता है.
  • बछड़े के जन्मजात दोष और संक्रमण से बचने के लिए सामान्य रूप से सेवा लेते समय सांड के प्रजनन इतिहास की जानकारी बहुत महत्वपूर्ण है.
  • स्वास्थ्यकर परिस्थितियों में गायों की सेवा करने और बछड़े पैदा करने से गर्भाशय के संक्रमण से बड़े पैमाने पर बचा जा सकता है.
  • गर्भाधान के 60-90 दिनों के बाद गर्भावस्था की पुष्टि के लिए जानवरों की जाँच योग्य पशु चिकित्सकों द्वारा कराई जानी चाहिए.
  • जब गर्भाधान होता है, तो गर्भावस्था के दौरान मादा यौन उदासीनता की अवधि में प्रवेश करती है (नियमित कामोत्तेजना का प्रदर्शन नहीं करती). गाय के लिए गर्भावस्था अवधि लगभग 285 दिनों की होती है और भैंसों के लिए, 300 दिनों की.
  • गर्भावस्था के अंतिम चरण के दौरान अनुचित तनाव और परिवहन से परहेज किया जाना चाहिए.
  • गर्भवती पशु को बेहतर खिलाई-पिलाई प्रबंधन और प्रसव देखभाल के लिए सामान्य झुंड से दूर रखना चाहिए.
  • गर्भवती जानवरों का प्रसव से दो महीने पहले पूरी तरह से दूध निकाल लेना चाहिए और उन्हें पर्याप्त पोषण और व्यायाम दिया जाना चाहिए. इससे माँ के स्वास्थ्य में सुधार करने में मदद मिलती है, औसत वजन के साथ एक स्वस्थ बछड़े का प्रजनन होता है, रोगों में कमी होती है और यौन चक्र की शीघ्र वापसी होती है.
अधिक जानकारी के लिए संपर्क करें,
गोकुल धाम गौशाला ग्राम -महिनाम तालुका -बेनीपुर जिला -दरभंगा स्टेट -बिहार मोबाईल -९८०११५०१२४

बछड़े की देखभाल


शुरुआती देखभाल
  • जन्म के ठीक बाद बछड़े के नाक और मुंह से कफ अथवा श्लेष्मा इत्यादि को साफ करें।
  • आमतौर पर गाय बछड़े को जन्म देते ही उसे जीभ से चाटने लगती है। इससे बछड़े के शरीर को सूखने में आसानी होती है और श्वसन तथा रक्त संचार सुचारू होता है। यदि गाय बछड़े को न चाटे अथवा ठंडी जलवायु की स्थिति में बछड़े के शरीर को सूखे कपड़े या टाट से पोंछकर सुखाएं। हाथ से छाती को दबाकर और छोड़कर कृत्रिम श्वसन प्रदान करें।
  • नाभ नाल में शरीर से 2-5 सेमी की दूरी पर गांठ बांध देनी चाहिए और बांधे हुए स्थान से 1 सेमी नीचे से काट कर टिंक्चर आयोडीन या बोरिक एसिड अथवा कोई भी अन्य एंटिबायोटिक लगाना चाहिए।
  • बाड़े के गीले बिछौने को हटाकर स्थान को बिल्कुल साफ और सूखा रखना चाहिए।
  • बछड़े के वजन का ब्योरा रखना चाहिए।
  • गाय के थन और स्तनाग्र को क्लोरीन के घोल द्वारा अच्छी तरह साफ कर सुखाएं।
  • बछड़े को मां का पहला दूध अर्थात् खीस का पान करने दें।
  • बछड़ा एक घंटे में खड़े होकर दूध पीने की कोशिश करने लगता है। यदि ऐसा न हो तो कमजोर बछड़े की मदद करें।
बछड़े का भोजन
नवजात बछड़े को दिया जाने वाला सबसे पहला और सबसे जरूरी आहार है मां का पहला दूध, अर्थात् खीस। खीस का निर्माण मां के द्वारा बछड़े के जन्म से 3 से 7 दिन बाद तक किया जाता है और यह बछड़े के लिए पोषण और तरल पदार्थ का प्राथमिक स्रोत होता है। यह बछड़े को आवश्यक प्रतिपिंड भी उपलब्ध कराता है जो उसे संक्रामक रोगों और पोषण संबंधी कमियों का सामना करने की क्षमता देता है। यदि खीस उपलब्ध हो तो जन्म के बाद पहले तीन दिनों तक नवजात को खीस पिलाते रहना चाहिए।
जन्म के बाद खीस के अतिरिक्त बछड़े को 3 से 4 सप्ताह तक मां के दूध की आवश्यकता होती है। उसके बाद बछड़ा वनस्पति से प्राप्त मांड और शर्करा को पचाने में सक्षम होता है। आगे भी बछड़े को दूध पिलाना पोषण की दृष्टि से अच्छा है लेकिन यह अनाज खिलाने की तुलना में महंगा होता है। बछड़े को दिए जाने वाले किसी भी द्रव आहार का तापमान लगभग कमरे के तापमान अथवा शरीर के तापमान के बराबर होना चाहिए।
बछड़े को खिलाने के लिए इस्तेमाल होने वाले बरतनों को अच्छी तरह साफ रखें। इन्हें और खिलाने में इस्तेमाल होने वाली अन्य वस्तुओं को साफ और सूखे स्थान पर रखें।
पानी का महत्व
ध्यान रखें हर वक्त साफ और ताजा पानी उपलब्ध रहे। बछड़े को जरूरत से ज्यादा पानी एक ही बार में पीने से रोकने के लिए पानी को अलग-अलग बरतनों में और अलग-अलग स्थानों में रखें।
खिलाने की व्यवस्था
बछड़े को खिलाने की व्यवस्था इस बात पर निर्भर करती है कि उसे किस प्रकार का भोज्य पदार्थ दिया जा रहा है। इसके लिए आमतौर पर निम्नलिखित व्यवस्था अपनाई जाती है:
  • बछड़े को पूरी तरह दूध पर पालना
  • मक्खन निकाला हुआ दूध देना
  • दूध की बजाए अन्य द्रव पदार्थ जैसे ताजा छाछ, दही का मीठा पानी, दलिया इत्यादि देना
  • दूध के विकल्प देना
  • काफ स्टार्टर देना
  • पोषक गाय का दूध पिलाना।
पूरी तरह दूध पर पालना
  • 50 किलो औसत शारीरिक वजन के साथ तीन महीने की उम्र तक के नवजात बछड़े की पोषण आवश्यकता इस प्रकार है:
    सूखा पदार्थ (डीएम) 1.43kg
    पचने योग्य कुल पोषक पदार्थ (टीडीएन) 1.60kg
    कच्चे प्रोटीन 315g
  • यह ध्यान देने योग्य है कि टीडीएन की आवश्यकता डीएम से अधिक होती है क्योंकि भोजन में वसा का उच्च अनुपात होना चाहिए। 15 दिनों बाद बछड़ा घास टूंगना शुरू कर देता है जिसकी मात्रा लगभग आधा किलो प्रतिदिन होती है जो 3 महीने बाद बढ़कर 5 किलो हो जाती है।
  • इस दौरान हरे चारे के स्थान पर 1-2 किलो अच्छे प्रकार का सूखा चारा (पुआल) बछड़े का आहार हो सकता है जो 15 दिन की उम्र में आधा किलो से लेकर 3 महीने की उम्र में डेढ किलो तक दिया जा सकता है।
  • 3 सप्ताह के बाद यदि संपूर्ण दूध की उपलब्धता कम हो तो बछड़े को मक्खन निकाला हुआ दूध, छाछ अथवा अन्य दुग्धीय तरल पदार्थ दिया जा सकता है।
बछड़े को दिया जाने वाला मिश्रित आहार
  • बछड़े का मिश्रित आहार एक सांद्र पूरक आहार है जो ऐसे बछड़े को दिया जाता है जिसे दूध अथवा अन्य तरल पदार्थों पर पाला जा रहा हो। बछड़े का मिश्रित आहार मुख्य रूप से मक्के और जई जैसे अनाजों से बना होता है।
  • जौ, गेहूं और ज्वार जैसे अनाजों का इस्तेमाल भी इस मिश्रण में किया जा सकता है। बछड़े के मिश्रित आहर में 10% तक गुड़ का इस्तेमाल किया जा सकता है।
  • एक आदर्श मिश्रित आहार में 80% टीडीएन और 22% सीपी होता है।
नवजात बछड़े के लिए रेशेदार पदार्थ
  • अच्छे किस्म के तनायुक्त पत्तेदार सूखे दलहनी पौधे छोटे बछड़े के लिए रेशे का अच्छा स्रोत हैं। दलहन, घास और पुआल का मिश्रण भी उपयुक्त होता है।
  • धूप लगाई हुई घास जिसकी हरियाली बरकरार हो, विटामिन-ए, डी तथा बी-कॉम्प्लैक्स विटामिनों का अच्छा स्रोत होती है।
  • 6 महीने की उम्र में बछड़ा 1.5 से 2.5 किग्रा तक सूखी घास खा सकता है। उम्र बढने के साथ-साथ यह मात्रा बढ़ती जाती है।
  • 6-8 सप्ताह के बाद से थोड़ी मात्रा में साइलेज़ अतिरिक्त रूप से दिया जा सकता है। अधिक छोटी उम्र से साइलेज़ खिलाना बछड़े में दस्त का कारण बन सकता है।
  • बछड़े के 4 से 6 महीने की उम्र के हो जाने से पहले तक साइलेज़ को रेशे के स्रोत के रूप में उसके लिए उपयुक्त नहीं माना जा सकता।
  • मक्के और ज्वार के साइलेज़ में प्रोटीन और कैल्शियम पर्याप्त नहीं होते हैं तथा उनमें विटामिन डी की मात्रा भी कम होती हैं।
पोषक गाय के दूध पर बछड़े को पालना
  • 2 से 4 अनाथ बछड़ों को दूध पिलाने के लिए उनकी उम्र के पहले सप्ताह से ही कम वसा-युक्त दूध देने वाली और दुहने में मुश्किल करने वाली गाय को सफलतापूर्वक तैयार किया जा सकता है।
  • सूखी घास के साथ बछड़े को सूखा आहार जितनी कम उम्र में देना शुरू किया जाए उतना अच्छा। इन बछड़ों का 2 से 3 महीने की उम्र में दूध छुड़वाया जा सकता है।
बछड़े को दलिए पर पालना
बछड़े के आरंभिक आहार (काफ स्टार्टर) का तरल रूप है दलिया। यह दूध का विकल्प नहीं है। 4 सप्ताह की उम्र से बछड़े के लिए दूध की मात्रा धीरे-धीरे कम कर भोजन के रूप में दलिया को उसकी जगह पर शामिल किया जा सकता है। 20 दिनों के बाद बछड़े को दूध देना पूरी तरह बंद किया जा सकता है।
काफ स्टार्टर पर बछड़े को पालना
इसमें बछड़े को पूर्ण दुग्ध के साथ स्टार्टर दिया जाता है। उन्हें सूखा काफ स्टार्टर और अच्छी सूखी घास या चारा खाने की आदत लगाई जाती है। 7 से 10 सप्ताह की उम्र में बछड़े का दूध पूरी तरह छुड़वा दिया जाता है।
दूध के विकल्पों पर बछड़े को पालना
यह अवश्य ध्यान में रखा जाना चाहिए कि नवजात बछड़े के लिए पोषकीय महत्व की दृष्टि से दूध का कोई विकल्प नहीं है। हालांकि, दूध के विकल्प का सहारा उस स्थिति में लिया जा सकता है जब दूध अथवा अन्य तरल पदार्थों की उपलब्धता बिल्कुल पर्याप्त न हो।
दूध के विकल्प ठीक उसी मात्रा में दिए जा सकते हैं जिस मात्रा में पूर्ण दुग्ध दिया जाता है, अर्थात् पुनर्गठन के बाद बछड़े के शारीरिक वजन का 10%। पुनर्गठित दूध के विकल्प में कुल ठोस की मात्रा तरल पदार्थ के 10 से 12% तक होती है।
दूध छुड़वाना
  • बछड़े का दूध छुड़वाना सघन डेयरी फार्मिंग व्यवस्था के लिए अपनाया गया एक प्रबन्धन कार्य है। बछड़े का दूध छुड़वाना प्रबन्धन में एकरूपता लाने में मदद करता है और यह सुनिश्चित करता है कि प्रत्येक बछड़े को उसकी आवश्यकता अनुसार दूध की मात्रा उपलब्ध हो और दूध की बर्बादी अथवा दूध का आवश्यकता से अधिक पान न हो।
  • अपनाई गई प्रबन्धन व्यवस्था के आधार पर जन्म के समय, 3 सप्ताह बाद, 8 से 12 सप्ताह के दौरान अथवा 24 सप्ताह में दूध छुड़वाया जा सकता है। जिन बछड़ों को सांड के रूप में तैयार करना है उन्हें 6 महीने की उम्र तक दूध पीने के लिए मां के साथ छोड़ा जा सकता है।
  • संगठित रेवड़ में, जहां बड़ी संख्या में बछड़ों का पालन किया जाता है जन्म के बाद दूध छुड़ाना लाभदायक होता है।
  • जन्म के बाद दूध छुड़वाने से छोटी उम्र में दूध के विकल्प और आहार अपनाने में सहूलियत होती है और इसका यह फायदा है कि गाय का दूध अधिक मात्रा में मनुष्य के इस्तेमाल के लिए उपलब्ध होता है।
दूध छुड़वाने के बाद
दूध छुड़वाने के बाद 3 महीने तक काफ स्टार्टर की मात्रा धीरे-धीरे बढ़ाई जानी चाहिए। अच्छे किस्म की सूखी घास बछड़े को सारा दिन खाने को देना चाहिए। बछड़े के वजन के 3% तक उच्च नमी वाले आहार जैसे साइलेज़, हरा चारा और चराई के रूप में घास खिलाई जानी चाहिए। बछड़ा इनको अधिक मात्रा में न खा ले इसका ध्यान रखना चाहिए क्योंकि इसके कारण कुल पोषण की प्राप्ति सीमित हो सकती है।
बछड़े की वृद्धि
बछड़े की वृद्धि वांछित गति से हो रही है या नहीं इसे निर्धारित करने के लिए वजन की जांच करें।
  • पहले 3 महीनों के दौरान बछड़े का आहार बहुत महत्वपूर्ण होता है।
  • इस चरण में बछड़े का खानपान अगर सही न हो तो मृत्यु दर में 25 से 30% की वृद्धि होती है।
  • गर्भवती गाय को गर्भावस्था के अंतिम 2-3 महीनों के दौरान अच्छे किस्म का चारा और सांद्र आहार दिया जाना चाहिए।
  • जन्म के समय बछड़े का वजन 20 से 25 किग्रा होना चाहिए।
  • नियमित रूप से कृमिनाशक दवाई दिए जाने के साथ-साथ उचित आहार दिए जाने से बछड़े की वृद्धि दर 10-15 किग्रा प्रति माह हो सकती है।
बछड़े के रहने के स्थान का महत्व
बछड़ों को अलग बाड़े में तब तक रखा जाना चाहिए जब तक कि उनका दूध न छुड़वा दिया जाए। अलग बाड़ा बछड़े को एक दूसरे को चाटने से रोकता है और इस तरह बछड़ों में रोगों के प्रसार की संभावना कम होती है। बछड़े के बाड़े को साफ-सुथरा, सूखा और अच्छी तरह से हवादार होना चाहिए। वेंटिलेशन से हमेशा ताजी हवा अन्दर आनी चाहिए लेकिन धूलगर्द बछड़ों के आंख में न जाएं इसकी व्यवस्था करनी चाहिए।
बछड़े के रहने के स्थान पर अच्छा बिछौना होना चाहिए ताकि आराम से और सूखी अवस्था में रह सकें। लकड़ी के बुरादे अथवा पुआल का इस्तेमाल बिछौने के लिए सबसे अधिक किया जाता है। बछड़े के ऐसे बाड़े जो घर के बाहर हों, आंशिक रूप से ढके हुए और दीवार से घिरे होने चाहिए ताकि धूप की तेज गर्मी अथवा ठंडी हवा, वर्षा और तेज हवा से बछड़े की सुरक्षा हो सके। पूरब की ओर खुलने वाले बाड़े को सुबह के सूरज से गर्मी प्राप्त होती है और दिन के गर्म समयों में छाया मिलती है। वर्षा पूरब की ओर से प्राय: नहीं होती।
बछड़े को स्वस्थ्य रखना
नवजात बछड़ों को बीमारियों से बचाकर रखना उनकी आरंभिक वृद्धि के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है और इससे उनकी मृत्यु दर कम होती है, साथ ही बीमारी से बचाव बीमारी के इलाज की तुलना में कम खर्च में किया जा सकता है। बछड़े का नियमित निरीक्षण करें, उन्हें ठीक तरह से खिलाएं और उनके रहने की जगह और परिवेश को स्वच्छ रखें।
स्रोत: गोकुल धाम गौशाला, पशुप्रबंधन, व्यावसायिक शिक्षा हेतु संस्थान,बिहार