शनिवार, 14 जनवरी 2012

सर्वांगीण डेयरी विकास परियोजना :

सर्वांगीण डेयरी विकास परियोजना :

भारत दुनिया में दूध और दूधजनित उत्पादों का तेजी से विकसित होता बाजार है। वर्ष 2007-08 में भारत में दूध का कुल उत्पादन 10.9 करोड़ टन था, जो कि विश्व के कुल उत्पादन का 14.75 प्रतिशत है। वर्ष 2010 तक दूध उत्पादन 11.10 करोड़ टन तक बढ़ाने का लक्ष्य रखा गया है। दूध उत्पादन में भारत द्वारा विश्व में पहला स्थान हासिल करने के बावजूद दूध की प्रति व्यक्ति प्रतिदिन खपत 246 ग्राम ही है। जो कि विश्व की औसत खपत 265 ग्राम प्रति व्यक्ति प्रतिदिन से कम है। इसी के मद्देनजर सरकार का मुख्य प्रयास अब दुधारू पशुओं की नस्ल में सुधार लाना है। ताकि प्रति व्यक्ति दूध उपलब्धता बढ़ायी जा सके।
परिणामस्वरूप दूध की खपत दर में भी बढ़ोत्तरी होगा। हमारे देश में डेयरी उद्योग करोड़ों गरीब परिवारों की रोजी-रोटी का जरिया बना हुआ है। हमारे यहां उत्पादित दूध का 80 प्रतिशत असंगठित क्षेत्र से तथा शेष 20 प्रतिशत सहकारी एवं निजी डेयरियों से आता है। अधिकतर दूध का उत्पादन ग्रामीण स्तर पर छोटे सीमांत किसानों तथा भूमिहीन मजदूरों द्वारा किया जाता है। इन्हें स्थिर बाजार तथा उत्पादित दूध का लाभकारी मूल्य देने के लिए आपरेशन फ्लड कार्यक्रम की शुरूआत की गयी है। इसके अंतर्गत देश के 1.2 करोड़ किसानों को देश में विद्यमान एक लाख से भी अधिक सहकारी समितियों से जोड़ा गया है।
 डेयरी के क्षेत्र का विकास उत्तरोत्तर होता रहें, इस हेतु सर्वांगीण डेयरी विकास कार्यक्रम दरभंगा  के सभी ग्राम स्तरों पर डेयरी खुलवाने हेतु डेयरी उद्यमियों को तैयार एवं प्रशिक्षित कर स्वरोजगार से बेरोजगारी को खत्म करने हेतु प्रयासरत है।
देश तथा देशवासी की उन्नति, स्वास्थ्यवर्धन आदि के साथ-साथ गरीबी तथा बेरोजगारी समाप्त करने का समुचित उपाय डेयरी व्यवसाय (गौ-पालन) है। आज हमारे देश की औसत जरूरत का मात्र दो तिहाई दूध की उत्पादन हो रहा हैं जिसमें से केवल 15 प्रतिशत दूध की पहुंच प्रोसेसिंग यूनिट तक हो पा रही है। भारत में आज डेयरी निर्माण की औसत तीन चार गाय है। भारत एक कृषि प्रधान देश होने के बावजूद कभी भी कृषि से आत्मनिर्भर नही पाया गया है। जनसंख्या वृद्धि से खेत बंट कर घटते चले जा रहें हैं। फलस्वरूप किसानों को वित्तीय स्थिरता प्रदान करने में केवल पशुपालन ही ही सहयोगी सिद्ध हो रहा है। डेयरी को खेती के मेल का कार्यक्रम न मान कर इसे आज एक उद्योग के रूप में चलाने की आवश्यकता है क्योंकि यहां धन अर्जन के कई सम्भावनाएं है। दूध के अतिरिक्त गोबर से खाद, गोबर से बिजली उत्पादन तथा गोमूत्र से कीटनाशक तथा अन्य दवाईयों का निर्माण होता हैं ।
आज पशुपालन को धानोपार्जन का अतिरिक्त श्रोत मानने के बजाय एक अच्छे उद्योग के दर्जे की व्यवसाय समझने की आवश्यकता है जिसे एक संघ के अंतर्गत चलाने की आवश्यकता है।
Gaushala
गौशाला वर्मी कम्पोस्ट बायो गैस जेनरेटर

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